Rudrashtakam Paath Benefits on MahaShivratri2024: शिव की अति शीघ्र कृपा पाने के लिए करें महाशिवरात्रि पर रुद्राष्टकम् का पाठ, हर कष्ट भय हो जायेगा दूर
Rudrashtakam Stotram
Path on Mahashivratri 2024: हिंदू-देवी
देवताओं में भगवान शिव को सबसे सर्वोच्च माना गया है। लोगों की भोले बाबा पर अटूट आस्था
है। भोलेनाथ का आशीर्वाद पाने के लिए भक्त सच्चे मन से उनकी आराधना करते हैं। महाशिवरात्रि
का दिन शिव जी को प्रसन्न करने के लिए सबसे उत्तम माना जाता है। इस दिन शिव भक्त भोलेनाथ
की कृपा पाने के लिए व्रत रखते हैं और पूरे विधि-विधान से भगवान शिव की पूजा करते हैं,
जिससे उनके भक्तों के जीवन में कभी किसी भी प्रकार के सुखों की कमी नहीं रहती है।
कहा जाता है की भगवान शिव की सच्चे मन से आराधना करने से
वो जल्द ही प्रसन्न हो जाते है। अगर आप भी शिव जी को जल्द प्रसन्न करना चाहते हैं तो
महाशिवरात्रि के दिन 'श्री शिव रूद्राष्टकम'
का पाठ जरूर करें।'शिव रुद्राष्टकम' अपने-आप में अद्भुत स्तुति है। रुद्राष्टकम भगवान
शिव की स्तुति में तुलसीदास द्वार रचित है। कहते हैं कि नियमित इसके पाठ से मनुष्य
पाप मुक्त हो जाता है और जीवन की सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं।
महाशिवरात्रि पर रुद्राष्टकम का पाठ बड़ा ही कल्याणकारी
कहा गया है। आइये इस महाशिवरात्रि पर भगवान शिव की असीम कृपा पाना के लिए रुद्राष्टकम्
का पाठ करते है और साथ ही जानते है इसका हिंदी अर्थ और इस पाठ का महत्व-
।। शिव रुद्राष्टकम
पाठ ।।
नमामीशमीशान
निर्वाणरूपं। विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् ॥
निजं
निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं। चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम् ॥1॥
अर्थात-
हे
मोक्षरूप, विभु, व्यापक ब्रह्म, वेदस्वरूप ईशानदिशा के ईश्वर और सबके स्वामी शिवजी,
मैं आपको नमस्कार करता हूं। निज स्वरूप में स्थित, भेद रहित, इच्छा रहित, चेतन, आकाश
रूप शिवजी मैं आपको नमस्कार करता हूं।
निराकारमोङ्कारमूलं
तुरीयं। गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम्।
करालं
महाकालकालं कृपालं। गुणागारसंसारपारं नतोऽहम्॥2॥
अर्थात-
निराकार,
ओंकार के मूल, तुरीय (तीनों गुणों से अतीत) वाणी, ज्ञान और इन्द्रियों से परे, कैलाशपति,
विकराल, महाकाल के भी काल, कृपालु, गुणों के धाम, संसार से परे परमेशवर को मैं नमस्कार
करता हूं।
तुषाराद्रिसंकाशगौरं
गभीरं। मनोभूतकोटिप्रभाश्री शरीरम्॥
स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी
चारुगङ्गा। लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा॥3॥
अर्थात-
जो
हिमाचल के समान गौरवर्ण तथा गंभीर है, जिनके शरीर में करोड़ों कामदेवों की ज्योति एवं
शोभा है, जिनके सिर पर सुंदर नदी गंगाजी विराजमान है, जिनके ललाट पर द्वितीया का चन्द्रमा
और गले में सर्प सुशोभित है।
चलत्कुण्डलं
भ्रूसुनेत्रं विशालं। प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम्॥
मृगाधीशचर्माम्बरं
मुण्डमालं। प्रियं शङ्करं सर्वनाथं भजामि॥4॥
अर्थात-
जिनके
कानों में कुण्डल शोभा पा रहे हैं। सुन्दर भृकुटी और विशाल नेत्र है, जो प्रसन्न मुख,
नीलकण्ठ और दयालु है। सिंह चर्म का वस्त्र धारण किए और मुण्डमाल पहने हैं, उन सबके
प्यारे और सबके नाथ श्री शंकरजी को मैं भजता हूं।
प्रचण्डं
प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं। अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशं॥
त्रय:
शूलनिर्मूलनं शूलपाणिं। भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम्॥5॥
अर्थात-
प्रचंड,
श्रेष्ठ तेजस्वी, परमेश्वर, अखण्ड, अजन्मा, करोडों सूर्य के समान प्रकाश वाले, तीनों
प्रकार के शूलों को निर्मूल करने वाले, हाथ में त्रिशूल धारण किए, भाव के द्वारा प्राप्त
होने वाले भवानी के पति श्री शंकरजी को मैं भजता हूं।
कलातीतकल्याण
कल्पान्तकारी। सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी॥
चिदानन्दसंदोह
मोहापहारी। प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी॥6॥
अर्थात-
कलाओं
से परे, कल्याण स्वरूप, प्रलय करने वाले, सज्जनों को सदा आनंद देने वाले, त्रिपुरासुर
के शत्रु, सच्चिदानन्दघन, मोह को हरने वाले, मन को मथ डालनेवाले हे प्रभो, प्रसन्न
होइए, प्रसन्न होइए।
न
यावद् उमानाथपादारविन्दं। भजन्तीह लोके परे वा नराणाम्।
न
तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं। प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं॥7॥
अर्थात-
जब
तक मनुष्य श्रीपार्वतीजी के पति के चरणकमलों को नहीं भजते, तब तक उन्हें न तो इहलोक
में, न ही परलोक में सुख-शान्ति मिलती है और उनके कष्टों का भी नाश नहीं होता है। अत:
हे समस्त जीवों के हृदय में निवास करने वाले प्रभो, प्रसन्न होइए।
न
जानामि योगं जपं नैव पूजां। नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यम्॥
जराजन्मदुःखौघ
तातप्यमानं। प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो॥8॥
अर्थात-
मैं
न तो योग जानता हूं, न जप और न पूजा ही। हे शम्भो, मैं तो सदा-सर्वदा आप को ही नमस्कार
करता हूं। हे प्रभो! बुढ़ापा तथा जन्म के दु:ख समूहों से जलते हुए मुझ दुखी की दु:खों
से रक्षा कीजिए। हे शम्भो, मैं आपको नमस्कार करता हूं।
रुद्राष्टकमिदं
प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये॥।
ये
पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति॥9॥
अर्थात-
जो
मनुष्य इस स्तोत्र को भक्तिपूर्वक पढ़ते हैं, उन पर शम्भु विशेष रूप से प्रसन्न होते
हैं।
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श्री शिव रुद्राष्टकम पाठ का महत्व और जाप विधि
श्रीरामचरितमानस में इस बात का वर्णन मिलता है कि मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम ने भी अपने सबसे बड़े शत्रु रावण पर विजय पाने के लिए रामेशवरम में शिवलिंग की स्थापना कर रूद्राष्टकम स्तुति का श्रद्धापूर्वक पाठ किया था, जिसके परिणाम स्वरूप शिव की कृपा से रावण पर उन्होंने विजय प्राप्त कर ली थी। महादेव को प्रसन्न करने का ये उत्तम उपाय है। रुद्राष्टकम् पाठ से जीवन में चल रही हर तरह की समस्या का समाधान मिलता है। शत्रु पक्ष पर विजय प्राप्त करने के इच्छुक जातकों को इसका पाठ करने से जरुर लाभ मिलेगा। यदि आप भी किसी शत्रु से परेशान हैं तो शिवरात्रि के दिन किसी शिव मंदिर या घर में ही आसन पर बैठकर 'रुद्राष्टकम' स्तुति का पाठ करें। ऐसा करने से शिव जी बड़े से बड़े शत्रुओं का नाश पल भर में करते हैं। रुद्राष्टकम् पाठ करने से जातक को असीम ऊर्जा और सकारात्मकता का अनुभव होता है।
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