Holashtak 2024 Date: होलाष्टक 17 मार्च से शुरू होगे। आइए जानते हैं होलाष्टक शुभ क्यों नहीं होते। इन दिनों कौन से कार्य क्यों नहीं करने चाहिए।
Holashtak 2024 Start And End Date: रंगों का त्यौहार होली हिंदू धर्म में बहुत ही प्रमुख, लोकप्रिय और महत्वपूर्ण त्यौहार माना जाता है। इस त्योहार को रंगों के साथ बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। होली का त्यौहार खुशियां बांटने का पर्व है और बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। फाल्गुन मास में होलिका दहन और होली पर्व का विशेष महत्व है। पंचांग के अनुसार, फाल्गुन माह में शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को होलिका दहन होता है और उसके अगले दिन चैत्र माह की प्रतिपदा के दिन होली खेली जाती है। लेकिन होली से आठ दिन पहले ही होलाष्टक शुरू हो जाते है। फिर होलिका दहन के साथ होलाष्टक का समापन होता है।
होलाष्टक शब्द होली और अष्टक से मिलकर बना है। इसका अर्थ है होली के आठ दिन। मान्यता है कि होलाष्टक के 8 दिनों में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है। यदि कोई इन दिनों में शुभ कार्य करता है तो उसे मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है, इसलिए इस दौरान किसी भी तरह के शुभ और मंगल कार्य करने से बचना चाहिए। हालांकि, ईश्वर की पूजा और जप-तप के लिए ये 8 दिन काफी शुभ माने जाते हैं।
दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम आपको बतायेगे कि इस साल होलाष्टक कब से शुरू हो रहे हैं और यह शुभ क्यों नहीं होते। आखिर इस दौरान व्यक्ति को कौन से कार्यों को नहीं करना चाहिए और क्या है इसे लेकर पौराणिक मान्यताएं? तो आइए जानते हैं-
कब से शुरू हो रहे होलाष्टक 2024?
हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल होलिका दहन 24 मार्च 2024 को होगा, जबकि 25 मार्च को रंग वाली होली खेली जाएगी। होली के दिन सभी लोग रंगों से रंगे होते है। होली के आठ दिन पहले होलाष्टक लग जाते हैं, इसलिए इस साल 17 मार्च से होलाष्टक शुरू हो जाएंगे और 24 मार्च तक रहेंगे।
होलाष्टक में क्यों नहीं होते शुभ काम?
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार होलाष्टक की अवधि में ग्रहों का गोचर शुभ नहीं होता है। इस अवधि में ग्रह उग्र स्वभाव के हो जाते हैं। ऐसे में शुभ कार्यों के लिए ग्रहों की ये स्थिति अच्छी नहीं मानी जाती है। माना जाता है कि इस दौरान कोई भी शुभ कार्य करने से व्यक्ति को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। होलाष्टक में किए गए कार्यों का नकारात्मक परिणाम मिलता है। साथ ही पारिवारिक कलह, धन हानी और बीमारी इत्यादि का भय बढ़ जाता है।
होलाष्टक में न करें यह काम
(Holashtak
Rules)
- होलाष्टक के समय विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन, नामकरण, उपनयन संस्कार, सगाई, जनेऊ संस्कार आदि संस्कार नहीं करने चाहिए।
- होलाष्टक के समय में कोई भी यज्ञ, हवन, भावगवत या रामायण पाठ आदि कार्यक्रम नहीं करना चाहिए। आप चाहें तो ये कार्य होली के बाद या उससे पहले कर सकते हैं।
- होलाष्टक के समय में कोई भी नया बिजनेस शुरू करने से बचना चाहिए। नए बिजनेस की शुरुआत के लिए ये समय अच्छा नहीं माना जाता है। साथ ही किसी भी तरह का निवेश भी नहीं करना चाहिए।
- होलाष्टक की अवधि में घर, गहने और वाहन की खरीदारी नहीं करनी चाहिए। मतलब आप अगर सोना- चांदी खरीदना चाहते हैं, तो होलाष्टक से पहले या बाद ही खरीदें।
- भवन निर्माण या प्रापर्टी लेन- बेच का कार्य भी होलाष्टक में नहीं करना चाहिए। वरना मां लक्ष्मी रुष्ट हो सकती हैं।
- इस दौरान नौकरी परिवर्तन से बचना चाहिए। वरना परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। यदि नई नौकरी ज्वाइन करनी है, तो उसे होलाष्टक के पहले या बाद में करें।
- इन दिनों नामकरण, मुंडन और बच्चों के जन्म से संबंधित कोई भी कार्य नहीं करने चाहिए। यदि बच्चे की छठी इन दिनों पड़ रही है तो उसकी भी तारीख आगे बढ़ा देनी चाहिए।
- होलाष्टक के दौरान दुल्हन की विदाई भी नहीं करनी चाहिए। इस समय दुल्हन को ससुराल से मायके और मायके से ससुराल नहीं जाना चाहिए। अगर किसी को जाना पड़े तो होलाष्टक से पहले ही चला जाना चाहिए।
होलाष्टक का महत्व (Holashtak 2024 Importance)
शास्त्रों में बताया गया है कि होलाष्टक के समय, भगवान की उपासना के लिए शुभ माना जाता है। इस अवधि में भगवान विष्णु व भगवान शिव की उपासना करने से सभी समस्याओं से छुटकारा पाया जा सकता है। साथ ही होलाष्टक के आठ दिनों में व्यक्ति को निरंतर महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना चाहिए। ऐसा करने से अकाल मृत्यु का भय दूर हो जाता है।
होलाष्टक की पौराणिक कथा
(Holashtak
Katha)
कहते हैं, होली का त्योहार अधर्म पर धर्म की विजय का उत्सव है। इसलिए होली से पहले होलिका दहन का जश्न मनाया जाता है। मान्यताओं के अनुसार, उस आग में सभी अधर्म का नाश हो जाता है। इसके पीछे एक पौराणिक कहानी है असुर हिरण्यकश्चप और उसके पुत्र प्रहलाद की।
असुर राजा हिरण्यकश्चप ने अपने पुत्र प्रहलाद को इन 8 दिनों में खासी यातनाएं दी थीं, क्योंकि वह भगवान विष्णु का भक्त था। हिरण्यकश्चप खुद को सर्वशक्तिमान मानता था और उसे यह बात रास नहीं आई। 8 दिन की यातना से भी जब प्रहलाद की भगवान के प्रति आस्था नहीं डिगी तो उसे मारने के लिए पूर्णिमा का दिन चुना गया। प्रहलाद की बुआ होलिका को वरदान था कि उसे आग जला नहीं सकती है। लिहाजा पूर्णिमा के दिन होलिका अपने भतीजे प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर अग्नि में बैठ गई ताकि उसका भतीजा जलकर भस्म हो जाए। लेकिन भगवान श्रीहरि की कृपा से प्रहलाद बच गया और होलिका जलकर भस्म हो गई।
तभी से ही बुराई की प्रतीक होलिका को जलाने की परंपरा है और उससे पहले के 8 दिन यानी कि होलाष्टक में भगवान की भक्ति करना शुभ माना जाता है। इसी के साथ होलाष्टक का भी समापन होलिका दहन के दिन किया जाता है।
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