श्री गणेश को तुरंत प्रसन्न करने के लिए इन नियमों के साथ चढ़ाएं दूर्वा….
देशभर में 10 दिनों तक चलने वाला गणेशोत्सव प्रथम पूज्य गणेश जी को समर्पित है। सनातन धर्म में मान्यता है कि कोई भी पूजा या अनुष्ठान तभी सफल होता है, जब उस पूजा की शुरुआत गणेश जी के नाम से की जाती हैं। वैसे तो हर मास की चतुर्थी तिथि को गणेश पूजा का विधान है लेकिन हर साल भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि का अपना विशेष महत्व है। मान्यता है कि इसी चतुर्थी के दिन (Ganesh Chaturthi Festival) गणपति भगवान का जन्म हुआ था। इसीलिए इस दिन गणेश भगवान की विशेष पूजा अर्चना की जाती है और उनके लिए व्रत रखा जाता है।
इस दौरान भगवान की मूर्ति को घर में लाकर स्थापित करने की भी परम्परा है। बप्पा (Bappa) के भक्त उनकी प्रतिमा को घर में इस विश्वास के साथ लाते हैं कि गणपति (Ganpati) उनके सारे संकट हर लेंगे। इस दिन नियम पूर्वक विधि-विधान के साथ भगवान गणेश की पूजा की जाती है। भगवान गणेश को दूर्वा (ganeshji ko durva kyu chadhate hain) बहुत पसंद है या यूँ कहें कि बिना दूर्वा या दूब घास के गणेशजी की पूजा पूरी नहीं होती है। इसलिए उनकी प्रिय दूर्वा अवश्य चढ़ानी चाहिए, माना जाता है कि ऐसा करने से भगवान गणेश जल्दी प्रसन्न होते हैं और सभी मनोकामना पूर्ण करते हैं। दूर्वा एक प्रकार की घास होती है, जिसे दूब, अमृता, अनंता, महौषधि भी कहा जाता है।
गणेश जी को दूर्वा चढ़ाने के नियम -
1- भगवान गणेश को अर्पित करने
वाली दूब साफ जगह यानी कि मंदिर, बगीचे
से तोड़ें। इसे चढ़ाने से पहले स्वस्छ
पानी से जरूर धो
लें।
2- जब तक गणपति
आपके घर पर विराजमान
रहें, नियमित रूप से उन्हें दूर्वा
जरूर अर्पित करें।
3- ऐसी मान्यता है कि गणपति
जी को
11 या 21 दूर्वा
का जोड़ा बनाकर गणेश चतुर्थी पर अर्पित करना
चाहिए और इन्हें दो
दो के जोड़े में
चढ़ाना चाहिए।
4- दूर्वा के जोड़े चढ़ाते
समय गणपति के ये मंत्रों
का जाप करें।
गणेश मंत्र (Ganesh Mantra):
1. ॐ गणाधिपाय नमः
2. ॐ उमापुत्राय नमः
3. ॐ विघ्ननाशनाय नमः
4. ॐ विनायकाय नमः
5. ॐ ईशपुत्राय नमः
6. ॐ सर्वसिद्धिप्रदाय नमः
7. ॐ एकदंताय नमः
8. ॐ इभवक्त्राय नमः
9. ॐ मूषकवाहनाय नमः
10. ॐ कुमारगुरवे नमः
एक
बात का हमेशा ध्यान
रखें
कि गणेशजी पर तुलसी कभी
भी नहीं चढ़ाई जाती। कार्तिक माहात्म्य में भी कहा गया
है कि 'गणेश तुलसी पत्र दुर्गा नैव तु दूर्वाया' अर्थात
गणेशजी की तुलसी पत्र
और दुर्गाजी की दूर्वा से
पूजा नहीं करनी चाहिए। भगवान गणेश को गुड़हल का
लाल फूल विशेष रूप से प्रिय है।
इसके अलावा चांदनी, चमेली या पारिजात के
फूलों की माला बनाकर
पहनाने से भी गणेश
जी प्रसन्न होते हैं। गणपति का वर्ण लाल
है, उनकी पूजा में लाल वस्त्र, लाल फूल व रक्तचंदन का
प्रयोग किया जाता है।
क्यों चढ़ाई जाती गणपति को दूर्वा ?
पौराणिक
कथा के अनुसार प्राचीनकाल
में अनलासुर नामक राक्षस था। स्वर्ग से लेकर धरती
तक उसका आतंक था। ऋषि, मुनि, देवी-देवता, आम मनुष्य सभी
उससे परेशान हो चुके थे,
जो भी उसके सामने
जाता वो उसे जिंदा
ही निगल लेता था। उसके आतंक से सारे देवी-देवता भी बहुत परेशान
हो गए थे । वो
इतना ताकतवर था कि देवताओं
की शक्ति भी उस दैत्य
के सामने कम पड़ने लगी
थी । तब सभी देवता
अनलासुर (anlasur) से
बचाने की प्रार्थना करने
भगवान गणेश की शरण में
गए।
गणपति
और अनलासुर के बीच भयंकर
युद्ध हुआ और भगवान गणेश
ने अनलासुर को जिंदा ही
निगल लिया। इसके बाद गणपति के पेट में
बहुत जलन होने लगी। तभी कश्यप ऋषि ने उस ताप
को शांत करने के लिए गणेशजी
को 21 दूर्वा
एकत्र कर समूह बनाकर
खाने के लिए दी।
तब जाकर उनकी पेट की जलन शांत
हुई। तब से गणपति
को दूर्वा अत्यंत प्रिय हो गई। ऐसी
मान्यता है इसी के
बाद से गणपति को
दूर्वा चढ़ाने की परंपरा शुरु
हो गई। इससे वो बेहद प्रसन्न
होते हैं।
🌷🌹 ॐ गं गणपतये नमो नम: 🌷🌹
www.99advice.com की तरफ से गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनायें।। 🙏💚
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