देशभर में 10 दिनों तक चलने वाला गणेशोत्सव प्रथम पूज्य गणेश जी को समर्पित है। सनातन धर्म में मान्यता है कि कोई भी पूजा या अनुष्ठान तभी सफल होता है, जब उस पूजा की शुरुआत गणेश जी के नाम से की जाती हैं। वैसे तो हर मास की चतुर्थी तिथि को गणेश पूजा का विधान है लेकिन हर साल भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि का अपना विशेष महत्व है। मान्यता है कि इसी चतुर्थी के दिन (Ganesh Chaturthi Festival) गणपति भगवान का जन्म हुआ था। इसीलिए इस दिन गणेश भगवान की विशेष पूजा अर्चना की जाती है और उनके लिए व्रत रखा जाता है।
इस दौरान भगवान की मूर्ति को घर में लाकर स्थापित करने की भी परम्परा है। बप्पा (Bappa) के भक्त उनकी प्रतिमा को घर में इस विश्वास के साथ लाते हैं कि गणपति (Ganpati) उनके सारे संकट हर लेंगे। इस दिन नियम पूर्वक विधि-विधान के साथ भगवान गणेश की पूजा की जाती है। भगवान गणेश को दूर्वा (ganeshji ko durva kyu chadhate hain) बहुत पसंद है या यूँ कहें कि बिना दूर्वा या दूब घास के गणेशजी की पूजा पूरी नहीं होती है। इसलिए उनकी प्रिय दूर्वा अवश्य चढ़ानी चाहिए, माना जाता है कि ऐसा करने से भगवान गणेश जल्दी प्रसन्न होते हैं और सभी मनोकामना पूर्ण करते हैं। दूर्वा एक प्रकार की घास होती है, जिसे दूब, अमृता, अनंता, महौषधि भी कहा जाता है।