Mahashivratri 2025: शिवयोग में मनेगा महाशिवरात्रि का पावन पर्व, पूजा करते समय भूलकर भी न करें ये 7 गलतियां
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Mahashivratri
2025: भूलकर
भी न करें
7 गलतियां |
हिन्दू धर्म में महाशिवरात्रि को भगवान शिव के प्रति सच्ची आस्था
और श्रृद्धा का पर्व माना जाता है। शिव जी को वरदान देने वाले देवता कहा जाता है, भगवान
शिव अपने नाम भोलेनाथ के अनुसार बहुत ही भोले माने जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस
दिन भगवान भोलेनाथ का व्रत रखने से वो अत्यंत प्रसन्न हो जाते हैं और अपने भक्तों की
सभी समस्याओं का समाधान करते हैं।
इस वर्ष 2025 में, यह महापर्व 26 फरवरी बुधवार को मनाया जायेगा। फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि 26 फरवरी दिन बुधवार को सुबह 11 बजकर 09 मिनट से शुरू होकर 27 फरवरी गुरुवार को सुबह 08 बजकर 55 मिनट पर समाप्त होगी। इस दोरान महान कल्याणकारी 'शिवयोग' भी विद्यमान रहेगा। शिव योग को स्वयं भगवान शिव से आशीर्वाद प्राप्त है। यह त्यौहार भगवान शिव और पार्वती माता के विवाहोत्सव के रूप में मनाया जाता है।
पूजा शुभ मुहूर्त:
महा शिवरात्रि 26 फरवरी दिन बुधवार को है। महाशिवरात्रि पूजा का सबसे शुभ समय चतुर्दशी तिथि 26 फरवरी दिन बुधवार को सुबह 11 बजकर 09 मिनट से शुरू होकर 27 फरवरी गुरुवार को सुबह 08 बजकर 55 मिनट पर समाप्त होगी।
महाशिवरात्रि 2025 पूजा के अन्य शुभ मुहूर्त-
महाशिवरात्रि के त्योहार पर भगवान शिव की पूजा चार प्रहर में करने का विधान होता है।
ब्रह्म मुहूर्त- 26 फरवरी को प्रात: काल में 05:17 से लेकर 06:05 मिनट तक
रात्रि प्रथम प्रहर पूजा समय - शाम 06:29 से रात 09 बजकर 34 मिनट तक
रात्रि द्वितीय प्रहर पूजा समय - रात 09:34 से 27 फरवरी सुबह 12 बजकर 39 मिनट तक
रात्रि तृतीय प्रहर पूजा समय - 27 फरवरी को रात 12:39 से सुबह 03 बजकर 45 मिनट तक
रात्रि चतुर्थ प्रहर पूजा समय - 27 फरवरी को सुबह 03:45 से 06 बजकर 50 मिनट तक
व्रत पारण समय - 27 फरवरी, सुबह 06 बजकर 48 मिनट से सुबह 08 बजकर 54 मिनट तक
शिव पूजा के दौरान भूलकर भी न करें ये 7 गलतियां
1. शंख का
प्रयोग न करें
भगवान शिव की पूजा में कभी भी शंख से जल अर्पित नहीं किया जाता है और न ही भगवान शिव की पूजा में शंख का उपयोग किया जाता है। दैत्य शंखचूड़ का भगवान शंकर ने त्रिशूल से वध किया था जिसके बाद उसका शरीर भस्म हो गया और उसी भस्म से ही शंख की उत्पत्ति हुई थी। मान्यता है कि ऐसा करने से भगवान शिव रुष्ट हो सकते हैं। इसलिए भोलेबाबा की पूजा में शंख नहीं बजाना चाहिए।
2. तुलसी पत्ता
शिव जी के पंचामृत में भूलकर भी तुलसी का प्रयोग नहीं किया जाता। ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव ने जलंधर नामक राक्षस का वध किया था और जलंधर की पत्नी वृंदा बाद में तुलसी का पौधा बन गई थीं जिसे भगवान विष्णु ने पत्नी रूप में स्वीकार किया था। इसलिए शिव जी की पूजा में तुलसी का प्रयोग करना मना है।
3. पुष्प
भगवान शिव की पूजा में केसर, दुपहरिका, मालती, चम्पा, चमेली, कुन्द, जूही आदि के पुष्प नहीं चढ़ाने चाहिए। क्योंकि ये फूल शिव जी को प्रिय नहीं होते हैं।
4. काला तिल
यह माना जाता कि काला तिल भगवान विष्णु के मैल से उत्पन्न हुआ है इसलिए इसे भगवान शिव को अर्पित नहीं करना चाहिए।
5. टूटे हुए चावल
शास्त्रों में भगवान शिव को अक्षत यानी साबुत चावल अर्पित किए जाने के बारे में लिखा है। टूटा हुआ चावल अपूर्ण और अशुद्ध होता है इसलिए यह शिव जी को नहीं चढ़ाया जाता है।
6. सिंदूर या कुमकुम
कुमकुम सौभाग्य का प्रतीक है जो हिंदू महिलाएं अपने पति की लम्बी उम्र के लिए लगाती हैं। जबकि भगवान शिव वैरागी हैं और विध्वंसक के रूप में जाने जाते हैं इसलिए शिवलिंग को कुमकुम नहीं चढ़ता।
7. टूटे बेलपत्र न करें अर्पित
भगवान शिव को कभी भी टूटे हुए बेल पत्र या फिर दो मुंह वाले बेलपत्र
नहीं चढ़ाने चाहिये।
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