भगवान शिव को देवो के देव महादेव के नाम से भी जाना जाता है। भगवान शिव के दर्शन और जीवन की कहानी हर धर्म और उनके ग्रंथों में अलग-अलग रूपों में विद्यमान है। क्योंकि भगवान शिव ही सभी धर्मों का मूल हैं। आज से करीब हजारों वर्ष पूर्व वराह काल के आरंभ में जब धरती हिमयुग की चपेट में थी तब देवी-देवताओं ने पृथ्वी पर अपने चरण रखे थे। उस अवधि में धरती के केंद्र कैलाश को, भगवान शंकर ने अपना निवास स्थान बनाया था।
शिव एक संस्कृत भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है, कल्याणकारी ,यजुर्वेद में शिव को शांतिदाता बताया गया है। ‘शि’ का अर्थ है, पापों का नाश करने वाला, जबकि ‘व’ का अर्थ देने वाला यानी दाता।
धर्म शास्त्रों के अनुसार, भगवान शिव ने ही सर्वप्रथम धरती पर जीवन के प्रचार-प्रसार का प्रयास किया इसलिए उन्हें 'आदि देव' भी कहा जाता है। आदि का अर्थ होता है आरम्भ। भगवान शंकर को 'आदिनाथ' भी कहा जाता है। जिस के कारण उनका एक नाम आदिश भी है। 'आदेश' शब्द भी इस 'आदिश' शब्द से ही बना है। जब नाथ साधु एक--दूसरे से मिलते हैं तो आपस में कहते हैं- आदेश।
जितने रहस्यमयी भगवान शिव हैं, उतने ही उनसे जुड़े तथ्य और उनकी वेश-भूषा विचित्र हैं। वह गले में नाग धारण करते हैं, भांग व धतूरा ग्रहण करते हैं और श्मशान में निवास करते हैं। ऐसे शिव शम्भू से जुड़े रोचक तथ्य, हम आपको आज बता रहे हैं, जो इस प्रकार हैं-
।। भगवान शिव से जुड़े कुछ रोचक तथ्य।।
1. भगवान शिव को अनादि माना गया है। अनादि का अर्थ होता है, जो सदैव से था, सदैव है और सदैव ही रहेगा। भगवान शिव के कोई माता-पिता नही है और ना ही उनकी कोई जन्मतिथि है।
2. हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार, केवल शंकर भगवान ही ऐसे देवता हैं
जिनके तीन नेत्र हैं। इसलिए उन्हें त्रिनेत्रधारी भी कहा जाता है। उनका तीसरा नेत्र
इसलिए बंद रहता है, क्योकि शास्त्रों में भगवान शिव को संहार का देवता भी कहते हैं।
अतः यह कहा जाता कि प्रभु की तीसरी आँख बंद ही रहे।
3. जहाँ सभी देवी-देवताओं वस्त्र-आभूषणों से सुसज्जित रहते हैं वहीं
भगवान शंकर सिर्फ मृग चर्म (हिरण की खाल) लपेटे और भस्म लगाए रहते हैं। भस्म शिव का
प्रमुख वस्त्र भी है क्योंकि शिव का पूरा शरीर ही भस्म से ढंका रहता है। भस्मी धारण
करने वाले शिव यह संदेश भी देते हैं कि मनुष्य का सबसे बड़ा गुण, परिस्थितियों के अनुसार
अपने आपको ढालना है।
4. किसी भी देवी-देवता की टूटी हुई मूर्ति की पूजा नही की जाती है।
लेकिन शिवलिंग चाहे कितना भी टूट जाए फिर भी उसकी पूजा की जाती है।
5. देवताओं और दानवों द्वारा किए गए समुंद्र मंथन के दौरान निकले हुए
विष को भगवान शंकर ने अपने कंठ में धारण किया था। जिस वजह से उनका कंठ नीला पड़ गया
था और यहीं से उनका नाम “नीलकंठ महादेव”पड़ गया था। शिव द्वारा विष पीना यह भी सीख देता है कि यदि कोई बुराई
पैदा हो रही हो तो हम उसे दूसरों तक नहीं पहुंचने दें।
6. केतकी का फूल, ब्रह्मा जी के झूठ का गवाह बना था इसलिए यह कभी भी
भगवान शंकर पर नही चढ़ाया जाता।
7. शिवलिंग पर बेलपत्र तो लगभग
सभी चढ़ाते है। लेकिन इसके लिए भी एक ख़ास सावधानी बरतनी पड़ती है कि बिना जल के बेलपत्र
नही चढ़ाया जा सकता। भगवान शिव को बेलपत्र चढ़ाने का विशेष महत्व है। बेलपत्र के तीन
पत्ते चार पुरुषार्थो में से, तीन का प्रतीक हैं- धर्म, अर्थं और काम, जब आप ये तीनों निस्वार्थ भाव से भगवान शिव को समर्पित
कर देते है तो चौथा पुरुषार्थ यानि मोक्ष अपने आप ही मिल जाता है।
8. शिवलिंग के साथ -साथ शंकर भगवान पर भी शंख से जल नही चढ़ाया जाता है क्योकि शंकर भगवान ने अपने त्रिशूल से शंखचूड़ को भस्म कर दिया था और शंखचूड़ की हड्डियों से ही शंख बना था।
9. शंकर भगवान के गले मे जो सांप लिपटा रहता है उसका नाम वासुकि है।
यह सांप शेषनाग के बाद नागों का दूसरा राजा था। भगवान शिव ने खुश होकर इसे गले में
डालने का वरदान दिया था।
10. तांडव करने के बाद भगवान भोलेनाथ ने सनकादि के लिए चौदह बार डमरू
बजाया था जिससे माहेश्वर सूत्र यानि संस्कृत व्याकरण का आधार प्रकट हुआ था।
11. भगवान शिव जिस बाघ की खाल को पहनते है, उस बाघ को उन्होनें स्वयं
अपने हाथों से मारा था।
12. भगवान शिव शंकर की जो मूर्ति भरतनाट्यम, कत्थक नृत्य करते समय रखी
जाती है, उसे “नटराज” के नाम से जाना जाता है।
13. नंदी, जो शंकर भगवान का वाहन और उसके सभी गणों में सबसे ऊपर भी है।
वह वास्तव में शिलाद ऋषि को वरदान में प्राप्त पुत्र था, जो बाद में कठोर तप के कारण
नंदी बना था।
14. भगवान शिव की जटाओं में रहने का वरदान चंद्रमा को मिला हुआ है।
15. गंगा भगवान शिव के सिर से क्यों बहती है? देवी गंगा को जब धरती पर
उतारने की सोची तो एक समस्या आई कि इनके वेग से तो भारी विनाश हो जाएगा। तब शंकर भगवान
को मनाया गया कि पहले गंगा को अपनी ज़टाओं में बांध लें, फिर अलग-अलग दिशाओं से धीरें-धीरें
उन्हें धरती पर उतारें।
सभी देवताओं में भगवान शिव एक ऐसे देवता है जो अपने भक्तों की पूजा पाठ से बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते है इसलिए इन्हें भोलेनाथ कहा जाता है। और यही कारण था की असुर भी वरदान प्राप्त करने के लिए भगवान शिव की तपस्या किया करते थे और उनसे मनचाहा वरदान प्राप्त कर लेते थे। अतः भोलेनाथ की महिमा को कौन नही जानता, उनके ही आशीर्वाद स्वरुप दुनिया के कार्य सम्भव हो पा रहे है।
हर हर महादेव…….
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