July 2019
तुला राशि 2020 राशिफल -Tula Rashi 2020 Rashifal in Hindi -तुला राशि
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सावन का महीना चल रहा है। यह महीना भक्तों के लिए बहुत खास होता
है। भगवान शिव सभी के पसंदीदा भगवान हैं। यह वो है जो एक सरल जीवन जीते है, एक स्वतंत्र
मन के साथ नृत्य करते है और अपने अनुयायियों से प्यार करते है। श्रावण का पूरा महीना
भगवान शिव को समर्पित होता है।
देश भर के शिव भक्त 02 अगस्त, 2024 को श्रावण शिवरात्रि मनाएंगे।
जबकि फरवरी / मार्च के महीने में यानि फाल्गुन के हिंदू महीने में आने वाली शिवरात्रि
को महा शिवरात्रि कहा जाता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, शिवरात्रि हर महीने आती है,
लेकिन महा शिवरात्रि और सावन शिवरात्रि सबसे महत्वपूर्ण हैं।
लेकिन सावन या श्रावण के महीने में आने वाली शिवरात्रि का विशेष
महत्व है। इस दिन पूजन का विशेष महत्व है। कहा जाता है कि अगर शिव की पूजा विधि-विधान
से की जाए तो हर मनोकामना पूरी होती है। इस दिन भगवान शिव की पूजा से मोक्ष की प्राप्ति
होती है, कई यज्ञों का फल प्राप्त होता है। जीवन में सुख- समृद्धि की कोई कमी नहीं
होती। शिवरात्रि में शिवलिंग पर जलाभिषेक करने से भगवान शिव जल्दी प्रसन्न होते हैं।
इस महीने रुद्राभिषेक करने से भक्तों के समस्त पापों का नाश हो जाता है।
भगवान शिव को रुद्र क्यों कहा जाता है?
रुद्र भगवान शिव का ही एक और नाम है। जैसे महादेव, शंकर, भोले नाथ
शिव और इसी तरह रुद्र भगवान शिव के नाम से बेहद प्रसिद्ध हैं। रुद्र' शब्द का प्रयोग
वेदों में किया गया है। रुद्र का अर्थ होता है टेम्पेस्ट या हिंसक तूफान। रुद्र भगवान
शिव के विनाशकारी स्वभाव पर केंद्रित है। भगवान शिव सौम्य और आक्रामक दोनों हैं। वह
क्षमाशील और निर्दयी है। वह सब कुछ है। वह ही आरंभ है और वह ही स्वयं अंत है। उनके
भक्त उन्हें इस तरह देखते हैं।
कुछ दार्शनिक और आध्यात्मिक विशेषज्ञों का मानना है कि रुद्र तांडव
नृत्य के कारण भगवान शिव को रुद्र कहा जाता है। यह माना जाता है कि एक मजबूत, निडर
और क्रोधी शिव श्मशान में रुद्र तांडव नृत्य करते हैं। वह अजेय और उग्र है।
एक अन्य कहानी कहती है कि रुद्र नाम 11 रुद्रों से जुड़ा है जो भगवान
शिव द्वारा बनाए गए थे। एक बार, भगवान ब्रह्मा ने भगवान शिव से कुछ दिलचस्प प्राणी
बनाने का अनुरोध किया। उन्होंने एकरसता की शिकायत की जो उन्हें साधारण प्राणी बनाने
से मिली। वह असाधारण प्राणी चाहते थे।
भगवान शिव हमेशा ही दयालु रहे हैं। उन्होंने भगवान ब्रह्मा के अनुरोध
को माना और 11 अमर जीवों को बनाया:
कपाली, पिंगला, भीम, विरुपाक्ष, विलोहिता, अजेशा, शवासन, शास्ता,
शंभू, चंदा और, ध्रुव।
भगवान शिव ने 11 रुद्रों की रचना की इसलिए उन्हें रुद्र नाम से संबोधित
किया गया।
रुद्राभिषेक का महत्व
एक कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव सपरिवार वृषभ पर बैठकर विहार
कर रहे थे। उसी समय माता पार्वती ने मृत्युलोक में रुद्राभिषेक कर्म में प्रवृत्त लोगों
को देखा तो भगवान शिव से जिज्ञासावश पूछा कि हे नाथ! मृत्युलोक में इस तरह आपकी पूजा
क्यों की जाती है? तथा इसका फल क्या है? भगवान शिव ने कहा- हे प्रिये! जो मनुष्य शीघ्र
ही अपनी कामना पूर्ण करना चाहता है वह आशुतोष स्वरूप मेरा विविध द्रव्यों से विविध
फल की प्राप्ति हेतु अभिषेक करता है। जो मनुष्य शुक्लयजुर्वेदीय रुद्राष्टाध्यायी से
अभिषेक करता है उसे मैं प्रसन्न होकर शीघ्र मनोवांछित फल प्रदान करता हूँ। जो व्यक्ति
जिस कामना की पूर्ति के लिए रुद्राभिषेक करता है वह उसी प्रकार के द्रव्यों का प्रयोग
करता है।
रुद्राभिषेक पूजा क्या है?
रुद्राभिषेक पूजा सर्वोपरि है। यह एक अनुष्ठान के रूप में अत्यंत
महत्वपूर्ण है। यह हिंदू धर्म में सबसे अच्छे, शुद्ध और सम्मोहक अनुष्ठानों में से
एकमानी जाती है। रुद्राभिषेक पूजा में भगवान शिव की पूजा की जाती है, उन्हें पवित्र
स्नान के साथ फूल और आवश्यक सामग्री अर्पित की जाती है।
रुद्राभिषेक पूजा कब होती है?
रुद्राभिषेक पूजा श्रावण के महीने में होती है। यह हिंदू धर्म के
अनुसार बारिश के महीने जुलाई-अगस्त में होती है।
रुद्राभिषेक पूजा के विशेष प्रकार
कई शिवभक्तों का मानना है कि एक नियमित पूजा या एक साधारण पूजा करने
के बजाय, अगर एक पूजा विशेष रूप से की जाती है, तो भगवान से प्यार और आशीर्वाद प्राप्त
करने की अधिक संभावना होती है। आप जिस उद्देश्य की पूर्ति हेतु रुद्राभिषेक करा रहे
हैं उसके लिए किस द्रव्य का इस्तेमाल करना चाहिए इसका उल्लेख शिव पुराण में किया गया है। वहीं से उद्धृत कर हम आपको यहां जानकारी दे
रहे हैं-
★ यदि वर्षा चाहते हैं तो जल
से रुद्राभिषेक करें।
★ रोग और दुःख से छुटकारा चाहते
हैं तो कुशा जल से अभिषेक करना चाहिए।
★ मकान, वाहन या पशु आदि की
इच्छा है तो दही से अभिषेक करें।
★ लक्ष्मी प्राप्ति और कर्ज
से छुटकारा पाने के लिए गन्ने के रस से अभिषेक करें।
★ धन में वृद्धि के लिए जल में
शहद डालकर अभिषेक करें।
★ मोक्ष की प्राप्ति के लिए
तीर्थ से लाये गये जल से अभिषेक करें।
★ बीमारी को नष्ट करने के लिए
जल में इत्र मिला कर अभिषेक करें।
★ पुत्र प्राप्ति, रोग शांति
तथा मनोकामनाएं पूर्ण करने के लिए गाय के दुग्ध से अभिषेक करें।
★ ज्वर ठीक करने के लिए गंगाजल
से अभिषेक करें।
★ सद्बुद्धि और ज्ञानवर्धन के
लिए दुग्ध में चीनी मिलाकर अभिषेक करें।
★ वंश वृद्धि के लिए घी से अभिषेक
करना चाहिए।
★ शत्रु नाश के लिए सरसों के
तेल से अभिषेक करें।
★ पापों से मुक्ति चाहते हैं
तो शुद्ध शहद से रुद्राभिषेक करें।
ऐसे तो अभिषेक साधारण रूप से जल से ही होता है। परन्तु विशेष अवसर
पर या सोमवार, प्रदोष और शिवरात्रि आदि पर्व के दिनों मंत्र गोदुग्ध या अन्य दूध मिला
कर अथवा केवल दूध से भी अभिषेक किया जाता है। विशेष पूजा में दूध, दही, घृत, शहद और
चीनी से अलग-अलग अथवा सब को मिला कर पंचामृत से भी अभिषेक किया जाता है। तंत्रों में
रोग निवारण हेतु अन्य विभिन्न वस्तुओं से भी अभिषेक करने का विधान है। इस प्रकार विविध
द्रव्यों से शिवलिंग का विधिवत् अभिषेक करने पर अभीष्ट कामना की पूर्ति होती है। इसमें
कोई संदेह नहीं कि किसी भी पुराने नियमित रूप से पूजे जाने वाले शिवलिंग का अभिषेक
बहुत ही उत्तम फल देता है। किन्तु यदि पारद के शिवलिंग का अभिषेक किया जाय तो बहुत
ही शीघ्र चमत्कारिक शुभ परिणाम मिलता है।
रूद्राभिषेक पूजा के लिए आवश्यक सामग्री
विल्व पत्र -108, धतूरा, दीपक, घी, दही, शहद, चंदन, सिंदूर, धूप, कपूर, पान के पत्ते, मेवा, गुलाबजल, पंचामृत, गन्ना
का रस, गंगाजल, कलावा, वस्त्र -इच्छानुसार, यगोपवित्र, उपवस्त्र -इच्छानुसार, सुगन्धित
द्रव्य, रोली, पुष्पमाला, पुष्प (चमेली, कमल पुष्प, शंख पुष्प, करवीर और दुपहरिया पुष्प,
हरसिंगार, बेला, कनेर, जूही, अलसी, धतूरे के फूलों ) नैवेद्य-इच्छानुसार, चन्दन की
लकडी, ऋतुफल-पांच, ताम्बूल-पूगीफल, आरती के लिये कपूर और अन्य सुगंधित पदार्थ जिन्हें
आप अर्पण करना चाहते हैं शामिल हैं।
रूद्राभिषेक पूजा प्रक्रिया
रुद्राभिषेक की पूजा को करने के पहले विस्तृत तैयारी की आवश्यकता
होती है। भगवान शिव, माता पार्वती, अन्य देवी-देवताओं और नवग्रहों के लिए आसन तैयार
करते हैं। पूजा शुरू करने से पहले भगवान गणेश की पूजा करके आशीर्वाद मांगा जाता है।
भक्त संकल्प लेते हैं या पूजा करने का उल्लेख बताते हैं। सभी के पूजन के बाद शिवलिंग
की पूजा की जाती है। प्रभावशाली मंत्रो और शास्त्रोक्त विधि से विद्वान ब्राह्मण द्वारा
पूजा को संपन्न करवाया जाता है। इस पूजा से जीवन में आने वाले संकटो एवं नकारात्मक
ऊर्जा से छुटकारा मिलता है।
पूजा की शुरुआत शिवलिंग पर गंगाजल डालने से होती है और गंगा जल के
साथ हर तरह के अभिषेक के बीच शिवलिंग को स्नान कराने के बाद अभिषेक के लिए आवश्यक सभी
सामग्री जैसे घी, दही, दूध आदि शिवलिंग पर अर्पण किया जाता है। पूजा आग पर एक होमा
प्रदर्शन से शुरू होती है और यह पुजारी या विद्वान ब्राह्मण द्वारा की जाती है। इसमें
शिवलिंग को उत्तर दिशा में रखते हैं। भक्त शिवलिंग के निकट पूर्व दिशा की ओर मुंख करके
बैठते हैं।
रुद्राभिषेक में शुक्ल यजुर्वेद के रुद्राष्टाध्यायी के मंत्रों
का पाठ करते हैं। अंत में, भगवान को वस्त्र, मिष्ठान और अन्य सामग्रियां अर्पित करके आरती की जाती है।
इस पूरी प्रक्रिया में शिवलिंग पर गिरने वाली धार बन्द नहीं होनी चाहिए। अभिषेक से
एकत्रित गंगा जल को भक्तों पर छिड़का जाता है और पीने के लिए भी दिया जाता है, जिसे
माना जाता है कि सभी पाप और बीमारियां दूर हो जाती हैं। रूद्राभिषेक की संपूर्ण प्रक्रिया
में रूद्राम या ' ॐ
नम: शिवाय ' का जाप चलता रहना चाहिए।
शिवरात्रि पर ‘ॐ नमः शिवाय’
का जाप और शिवलिंग का अभिषेक करना भी बहुत शुभ माना जाता है। ऐसा कहते हैं कि शिव मंत्र
का जाप करने से भोले शंकर हमारे जीवन के सारे दुखों को हर लेते हैं। शिव कृपा से आपकी
सभी मनोकामना जरूर पूरी होंगी तो आपके मन में जैसी कामना हो वैसा ही रुद्राभिषेक करिए
और अपने जीवन को शुभ ओर मंगलमय बनाइए।
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हिंदू धर्म में सावन मास बेहद पावन महीनों में से एक होता है. श्रावण मास में कई पावन पर्वों का संयोग रहता है. उन पर्वों में से एक नाग पंचमी को हिंदू धर्म में बड़ी ही मान्यता के साथ मनाया जाता है. हर साल सावन महीने के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली पचंमी को नाग पंचमी के रूप में मनाया जाता है. इस बार नाग पंचमी 5 अगस्त 2019 को है. शास्त्रों के अनुसार सर्प भगवान के अत्यंत प्रिय माने गए है. तभी तो भगावन शिव सर्प को अपने गले में धारण किए हुए हैं. दूसरी भगवान विष्णु भी शेषनाग पर खुद को विराजमान किए हुऐ हैं. ऐसे में नाग पंचमी के दिन नाग को देवता रूप में मानकर उनकी पूजा-अर्चना की जाती. ऐसे में आपको बताने जा रहे हैं कि नाग पंचमी की क्या महत्व और किस विधि से नाग देवता की पूजा करनी चाहिए. साथ ही इस बार किस शुभ मुहूर्त में पड़ रही है नाग पंचमी.
जाने नाग पंचमी पर कैसे करें पूजा-
- नाग पंचमी के दिन घरों के दरवाजों और दीवारों के कौनों पर कोयले को दूध में मिलकार सर्प का चिन्ह बनाएं.
- सुबह नित क्रिया और स्नान करने के बाद घर में सैवई और चावल बनवाएं.
- उसके बाद एक लकड़ी के तख्ते पर नाग देवता की मूर्ति स्थापित करें.
- जल, दूध, चंदन, सुंग्धित फूल, आदि पूजन सामग्री नाग देवता पर अर्पित करें.
- बैल पत्र, हरिद्रा, सिंदूर, नैवेद्ध आदि को विधि पूर्व नाग देवता को चढ़ा कर पूजा करें.
- साथ ही काल सर्पदोष वाले लोग नाग पंचमी पर ऊँ कुरुकुल्य हुं फट स्वाहा मंत्र का जाप करें.
- नाग पंचमी के दिन शिवालय यानी शिव मंदिर पर जाकर सर्प को दूध पिलाना काफी शुभ माना जाता है.
नागपंचमी पर कालसर्प दोष के उपाय (Nag Panchami Kaal Sarp Dosh Ke Upay)
1.नागपंचमी के दिन चांदी के नाग- नागिन का जोड़ा बनवाकर विधिवत पूजा करें। इसके बाद नाग-नागिन के जोड़े को बहते जल में प्रवाहित कर दें।
2.नागपंचमी के दिन सपेरे को पैसें देकर नाग- नागिन के जोड़े को जंगल में आजाद कराएं।
2.नागपंचमी के दिन सपेरे को पैसें देकर नाग- नागिन के जोड़े को जंगल में आजाद कराएं।
3.नागपंचमी के दिन किसी ऐसे शिव मंदिर में जाएं जहां नाग न हो। वहां जाकर चांदी के नाग को प्रतिष्ठित कराकर नाग चढ़ाएं।
4.नागपंचमी में भगवान शिव के मंदिर में जाकर गुलाब इत्र चढ़ाएं और स्वंय भी रोज वही इत्र लगाएं।
5.नागपंचमी के दिन गौ मूत्र से दांत साफ और नित्य दिन ऐसा ही करें।
6. नागपंचमी के दिन शिवलिंग पर चंदन तथा चंदन का इत्र लगांए।
हिन्दू धर्म में सावन माह का अत्यंत
महत्व है। यह माह भगवान शिव की विधि विधान से पूजा कर उन्हें प्रसन्न करने का शुभ अवसर
होता है। हिंदू पंचाग के अनुसार जिस प्रकार वर्ष के सभी मास किसी न किसी देवता के साथ
संबंधित है, उसी प्रकार सावन या श्रावण माह का सम्बन्ध भी शिव जी के साथ माना जाता
है। इस समय शिव आराधना का विशेष महत्व होता है। इसीलिए श्रावण मास को वर्ष का सबसे
पवित्र मास माना जाता है।
हिन्दू शास्त्रों के अनुसार यह महीना
भगवान शिव को बहुत प्रिय होने के साथ साथ सभी की मनोकामनाओं को पूरा करने वाला भी होता
है। सोमवार तथा श्रवण नक्षत्र से भगवान शिव का घनिष्ट संबंध है। इस श्रावण मास में
शिव भक्त को ज्योतिर्लिंगों का दर्शन एवं जलाभिषेक करने से अश्वमेघ यज्ञ के समान फल
प्राप्त होता है तथा वह शिवलोक को पाता है। यह माह अपने हर एक दिन में एक नई सुबह तो
दिखाता ही है, साथ-साथ इस मास के सभी दिन धार्मिक आस्था से भरपूर होते हैं।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सावन
माह भगवान विष्णु और शिव शंकर का आशीर्वाद लेकर आता है। ऐसा माना जाता है कि भगवानशिव को पति रूप में पाने के लिए देवी पार्वती ने पूरे श्रावण माह में कठोर तपस्या करके
भगवान शिव को प्रसन्न किया था। अतः यह महीना भगवान शिव की पूजा के लिए विशेष महत्व
रखता है।
सावन मास क्यों सबसे सर्वश्रेष्ठ है,
इसकी जानकारी हमें शास्त्रों में बताये हुए इन पौराणिक तथ्यों से मिलती है। आइये जानते हैं-
1. शास्त्रों में उल्लिखित है कि सावन में भगवान विष्णु चार महीनों
के लिए योगनिद्रा में चले जाते हैं। सभी भक्तों, साधु-संतों के लिए यह समय अमूल्य होता
है। इसे 'चौमासा' भी कहा जाता है। तत्पश्चात भगवान शिव सृष्टि के संचालन का दायित्व
ग्रहण करते हैं। इसलिए भगवान शिव सावन माह के प्रमुख देवता बन जाते हैं।
2. पौराणिक कथा के अनुसार, मरकंडू ऋषि के पुत्र मारकण्डेय की आयु कम
थी। अतः लंबी आयु प्राप्त करने और अकाल मृत्यु से बचने के लिए मारकण्डेय ने सावन माह
में ही भगवान शिव की कठिन तप करके शिव जी को प्रसन्न किया था और लंबी आयु का वरदान
प्राप्त किया था। इस वजह से मृत्यु के देवता यमराज को भी उनके प्राण छोड़ने पड़े थे।
शिव जी को अपने भक्त की श्रद्धा एवं तपस्या के कारण भी सावन माह विशेष रूप से प्रिय
है।
3. भगवान शिव को सावन का महीना प्रिय होने का एक अन्य कारण यह भी है
कि सावन के महीने में भगवान शिव पृथ्वी पर अवतरित होकर अपनी ससुराल गए थे और वहां अर्घ्य
और जलाभिषेक से उनका स्वागत किया गया था। ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव हर वर्ष सावन
के महीने में अपनी ससुराल आते हैं। सभी भू-लोक वासियों के लिए शिव जी की कृपा पाने
का यह सबसे अच्छा समय होता है।
4. श्रावण में भगवान शिव के जलाभिषेक
के संदर्भ में एक कथा बहुत प्रचलित है। सावन मास में समुद्र मंथन किये जाने का उल्लेख,
हिन्दू पौराणिक कथा में मिलता है। इस कथा में यह बताया गया है कि जब देवों ओर राक्षसों
ने मिलकर अमृत प्राप्ति के लिए सागर मंथन किया तो उस मंथन के समय समुद्र में से अनेक
पदार्थ उत्पन्न हुए और अमृत कलश से पूर्व हलाहल विष भी निकला। उस विष की भयंकर ज्वाला
से समस्त ब्रह्माण्ड जलने लगा। इस संकट से व्यथित समस्त जन भगवान शिव के पास पहुंचे
और उनके समक्ष प्रार्थना करने लगे। तब सभी की प्रार्थना पर भगवान शिव ने समुद्र मंथन
के बाद निकलने वाले हलाहल विष को, सृष्टि की रक्षा करने के लिए अपने कंठ में ग्रहण
कर के उसे अपने कंठ में अवरूद्ध कर लिया। जिससे उनका कंठ नीला हो गया और इसी वजह से
उनका नाम नीलकंठ महादेव पड़ा है।
विष का पान करने से भगवान शिव के शरीर
का तापमान तेज गति से बढ़ने लगा था। इस विष के प्रभाव को कम करने के लिए समस्त देवी-देवताओं
ने उन्हें जल अर्पित किया। देवराज इन्द्र ने भी अपने तेज से मूसलाधार बारिश कर दी।
इस वजह से सावन के महीने में सर्वाधिक वर्षा होती है, जिससे भोलेनाथ प्रसन्न होते हैं।
तभी से यह प्रथा आज भी चली आ रही है। प्रभु का जलाभिषेक करके समस्त भक्त उनकी कृपा
को पाते हैं इसलिए श्रावण मास में भोले शंकर को जल चढ़ाने का विशेष महत्व है।
5. 'शिवपुराण' में यह वर्णन भी है कि भगवान शिव स्वयं ही जल हैं। इसलिए
जलाभिषेक करने से उत्तमोत्तम फल की प्राप्ति होती है।
मित्रों, आप सभी को मेरा यह लेख कैसा
लगा मुझे जरूर बताये। आपके कमेंट्स का मुझे बेसब्री से इंतज़ार रहेगा। आप सभी को पवित्र
सावन की हार्दिक शुभकामनाएं।
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हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव जितने रहस्यपूर्ण हैं,
उनकी वेश-भूषा व उनसे जुड़े तथ्य भी उतने ही विचित्र हैं। सभी देवताओं में भगवान शिव
एक ऐसे देवता है जो अपने भक्तों की पूजा पाठ से बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते है। देवों
के देव देवाधिदेव महादेव ही एक मात्र ऐसे भगवान हैं, जिनकी भक्ति हर कोई करता है। चाहे
वह इंसान हो, राक्षस हो, भूत-प्रेत हो अथवा देवता। भगवान महादेव बहुत ही भोले हैं,
अगर कोई भक्त पूर्ण श्रद्धा के साथ उन्हें केवल एक लोटा जल ही अर्पित करता है तब भी
वह शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं। महादेव की इसी विशेषता की वजह से उन्हें भोलेनाथ भी कहा जाता है।
प्रत्येक देवी-देवताओं की पूजा करने के लिए, हिन्दू धर्म में कुछ
विशेष प्रावधान मौजूद हैं, जिस तरह से यह माना जाता है कि गणेश जी की पूजा में उनके
प्रिय मोदक का भोग अवश्य लगाना चाहिए, भगवान कृष्ण को माखन-मिश्री प्रिय है, उसी तरह
से भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए कुछ छोटे और सरल उपाय हैं, जिन्हेँ बड़ी ही
आसानी से किया जा सकता है।
ये 15 सरल उपाय इस प्रकार हैं-
1. भगवान शिव
के मंदिर परिसर में महा मृत्युंजय मंत्र का नियमित जाप व्यक्ति को हर रोग व बीमारी
से मुक्ति प्रदान करता है और ऐसा करने से व्यक्ति को मोक्ष प्राप्त होता है|
2. भगवान शिव को बिल्व पत्र अत्यंत प्रिय है इसलिए शिवलिंग
का जल द्वारा अभिषेक करने के पश्चात् शिवलिंग पर बिल्वपत्र अवश्य अर्पित करने चाहिए|
3. एक ताम्बे
का पात्र अथवा कलश में कच्चे दूध में थोड़ी शक्कर मिलाकर भगवान शिव को अर्पित करे। इस
उपाय को करने से माता सरस्वती का आशीर्वाद प्राप्त होता है और व्यक्ति के ज्ञान में
वृद्धि होती है।
4. शिवरात्रि
पर धतूरा, भांग और आक चढ़ाना शिव की पूरी साधना करने के बराबर फलदायी होता हैं।
5. बिल्वपत्रों
पर चन्दन से ॐ नमः शिवाय लिखे तथा इसके
बाद उन पत्त्तों द्वारा माला बनाकर भगवान शिव को अर्पित करे। परन्तु इस समय ध्यान रखे
की पत्ते कही से भी कटे फ़टे नहीं होने चाहिए।
6. भक्त अष्ट
धातु, स्फटिक, पत्थर, पारे, सोने चांदी अथवा रत्नों के बने हुए शिवलिंग का पूजन करते
हैं। कहा जाता है कि सबसे श्रेष्ठ तो केवल पारे का शिवलिंग होता है जिसकी पूजा से जन्म
मरण से मुक्ति प्राप्त होती है एवं शिव की अमोघ कृपा बरसती है।
raksha bandhan 2019 kab hai | rakhi 2019 muhurat
रक्षाबंधन का त्यौहार प्रतिवर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाते हैं; इसलिए इसे राखी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व भाई-बहन के प्रेम का उत्सव है। इस दिन बहनें भाइयों की समृद्धि के लिए उनकी कलाई पर रंग-बिरंगी राखियाँ बांधती हैं, वहीं भाई बहनों को उनकी रक्षा का वचन देते हैं। कुछ क्षेत्रों में इस पर्व को राखरी भी कहते हैं। यह सबसे बड़े हिन्दू त्योहारों में से एक है।
क्या है भद्रा
शास्त्रों की मान्यता के अनुसार भद्रा का संबंध सूर्य और शनि से होता है। हिन्दू धर्म शास्त्रों में, भद्रा भगवान सूर्य देव की पुत्री और शनिदेव की बहन है। शनि की तरह ही इसका स्वभाव भी क्रूर बताया गया है। इस उग्र स्वभाव को नियंत्रित करने के लिए ही भगवान ब्रह्मा ने उसे कालगणना या पंचाग के एक प्रमुख अंग करण में स्थान दिया। जहां उसका नाम विष्टी करण रखा गया। भद्रा की स्थिति में कुछ शुभ कार्यों, यात्रा और उत्पादन आदि कार्यों को निषेध माना गया। इसलिये इस बार भद्रा का साया समाप्त होने पर ही रक्षाबंधन अनुष्ठान किया जाता है। लेकिन इस बार भद्रा मुक्त रक्षाबंधन होने से यह बहनों के लिये बहुत ही हर्ष का पर्व है।इसलिये भी खास है इस बार राखी
रक्षाबंधन का यह पवित्र त्यौहार इस बार गुरुवार के दिन है जो कि देव गुरु बृहस्पति का दिन माना जाता है। रक्षाबंधन को लेकर मान्यता है कि बृहस्पति देवराज इंद्र की विजय प्राप्ति के लिये इंद्र की पत्नी को रक्षासूत्र बांधने को कहा था। वहीं इसका चलन माना जाता है। इस कारण गुरुवार के दिन यह पर्व होने से इसका महत्व और भी बढ़ जाता है।रक्षाबंधन पूजा विधि (Raksha Bandhan Puja Vidhi)
1.रक्षाबंधन के दिन सबसे पहले बहनों को सुबह जल्दी उठकर स्नान करके साफ वस्त्र धारण करने चाहिए।
2.इसके बाद आटे से चौक पूजकर मिट्टी के छोटे से घड़े की स्थापना करें।
3.एक थाली में रोली, अक्षत, कुमकुम, मिठाई, घी का दीया और राखी रखें।
4. इसके बाद भाई को पूर्व दिशा की और बैठाकर रोली से तिलक करें और उसकी दहिने हाथ की कलाई पर राखी बांधे।
5. राखी बांधने के बाद अगर भाई छोटा है तो उसे आर्शीवाद दे और बड़ा है तो उससे आर्शीवाद ले।
rakhi 2019 muhurat
राखी बांधने का मुहूर्त : 05:49:59 से 18:01:02 तक
अवधि :12 घंटे 11 मिनट
रक्षा बंधन अपराह्न मुहूर्त :13:44:36 से 16:22:48 तक
Raksha Bandhan Thread Ceremony Time -5:54 AM to 18:01:02 PM
Duration - 12 Hours 11 Aparahna Time Raksha Bandhan Muhurat - 01:44 PM to 04:22 PM
Duration - 02 Hours 37 Mins
राखी बांधने का मुहूर्त : 05:49:59 से 18:01:02 तक
अवधि :12 घंटे 11 मिनट
रक्षा बंधन अपराह्न मुहूर्त :13:44:36 से 16:22:48 तक
Raksha Bandhan Thread Ceremony Time -5:54 AM to 18:01:02 PM
Duration - 12 Hours 11 Aparahna Time Raksha Bandhan Muhurat - 01:44 PM to 04:22 PM
Duration - 02 Hours 37 Mins
महादेव का पवित्र माह है श्रावण मास, इस दौरान भगवान भोलेनाथ के नामों का जाप करने से अनेक प्रकार के दोषों का शमन होकर मनुष्य को अपने पाप कर्मों से मुक्ति मिलती है।
कैसे करें अभिषेक- भगवान सदाशिव को प्रसन्न करने के लिए शिव के पंचाक्षर मंत्र ॐ नमः शिवाय, लघु रूद्री से अभिषेक करें। शिवजी को बिल्वपत्र, धतूरे का फूल, कनेर का फूल, बेलफल, भांग चढ़ाकर पूजन करें।
मेष- शहद, गु़ड़, गन्ने का रस। लाल पुष्प चढ़ाएं।
वृष- कच्चे दूध, दही, श्वेत पुष्प।
मिथुन- हरे फलों का रस, मूंग, बिल्वपत्र।
कर्क- कच्चा दूध, मक्खन, मूंग, बिल्वपत्र।
सिंह- शहद, गु़ड़, शुद्ध घी, लाल पुष्प।
कन्या- हरे फलों का रस, बिल्वपत्र, मूंग, हरे व नीले पुष्प।
तुला- दूध, दही, घी, मक्खन, मिश्री।
वृश्चिक- शहद, शुद्ध घी, गु़ड़, बिल्वपत्र, लाल पुष्प।
धनु- शुद्ध घी, शहद, मिश्री, बादाम, पीले पुष्प, पीले फल।
मकर- सरसों का तेल, तिल का तेल, कच्चा दूध, जामुन, नीले पुष्प।
कुंभ- कच्चा दूध, सरसों का तेल, तिल का तेल, नीले पुष्प।
मीन- गन्ने का रस, शहद, बादाम, बिल्वपत्र, पीले पुष्प, पीले फल।
कैसे करें अभिषेक- भगवान सदाशिव को प्रसन्न करने के लिए शिव के पंचाक्षर मंत्र ॐ नमः शिवाय, लघु रूद्री से अभिषेक करें। शिवजी को बिल्वपत्र, धतूरे का फूल, कनेर का फूल, बेलफल, भांग चढ़ाकर पूजन करें।
मेष- शहद, गु़ड़, गन्ने का रस। लाल पुष्प चढ़ाएं।
वृष- कच्चे दूध, दही, श्वेत पुष्प।
मिथुन- हरे फलों का रस, मूंग, बिल्वपत्र।
कर्क- कच्चा दूध, मक्खन, मूंग, बिल्वपत्र।
सिंह- शहद, गु़ड़, शुद्ध घी, लाल पुष्प।
कन्या- हरे फलों का रस, बिल्वपत्र, मूंग, हरे व नीले पुष्प।
तुला- दूध, दही, घी, मक्खन, मिश्री।
वृश्चिक- शहद, शुद्ध घी, गु़ड़, बिल्वपत्र, लाल पुष्प।
धनु- शुद्ध घी, शहद, मिश्री, बादाम, पीले पुष्प, पीले फल।
मकर- सरसों का तेल, तिल का तेल, कच्चा दूध, जामुन, नीले पुष्प।
कुंभ- कच्चा दूध, सरसों का तेल, तिल का तेल, नीले पुष्प।
मीन- गन्ने का रस, शहद, बादाम, बिल्वपत्र, पीले पुष्प, पीले फल।
इस साल गुरु पूर्णिमा पर 149 साल बाद 16 और 17 जुलाई को चंद्रग्रहण लगने वाला है। यह भारत में भी दिखाई देगा। 16 जुलाई की रात चंद्र ग्रहण 1:32 बजे से आरंभ होगा, जिसका मोक्ष 17 जुलाई की सुबह 4:30 बजे होगा।
ऐसी मान्यता है कि चंद्र ग्रहण या सूर्य ग्रहण के दौरान गर्भवती महिलाओं को घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि ग्रहण के समय निकलने वाली दूषित किरणें गर्भ में पल रहे शिशु पर बुरा असर डालती है जिसका असर बच्चे की शारीरिक और मानसिक सेहत पर पड़ता है। बच्चा अस्वस्थ भी पैदा हो सकता है।
आज हम आपको अपने इस लेख में कुछ ऐसी ही विशेष बातें बताने जा रहे
है जिनका ध्यान गर्भवती महिला को रखना
चाहिए। तो आइये दोस्तों जानते हैं ऐसी ही कुछ ध्यान देने योग्य विशेष बातें
जो ग्रहण के असर को कम कर सकती हैं।
1. किसी भी तरह के ग्रहण के वक़्त गर्भवती स्त्रियों को किसी भी नुकीली चीज का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए जैसे चाकू, सूई, कैंची आदि। ओर ना ही गर्भवती महिलाओं को सिलाई करनी चाहिए। कहा जाता है कि इसका असर बच्चे के स्वास्थ्य पर पड़ता है। इसकी वजह से कभी-कभी बच्चे के शरीर पर कट के निशान आ जाते है।
2. शास्त्रों के अनुसार सूतक काल अच्छा समय नहीं माना जाता है, अत: सूतक में किसी भी गर्भवती महिला को चंद्र ग्रहण के दौरान खाना नहीं बनाना चाहिए और खाना नहीं चाहिए। बने हुए खाने में कुछ पत्ते तुलसी के डाल दे और ग्रहण खत्म होने के पश्चात उन पत्तों को निकाल दें। ऐसा करने से ग्रहण के बाद भी खाना पूरी तरह शुद्ध रहता है। हालांकि गर्भवती महिलाएं दूध, फल या जूस ले सकती हैं क्योंकि बहुत देर तक कुछ ना खाने से शिशु के स्वास्थ्य पर असर पड़ सकता है।
3. ऐसा मानते है कि ग्रहण खत्म होने के बाद गर्भवती महिला को जरूर नहाना चाहिए। ऐसा ना करने पर उसके शिशु को त्वचा संबधी रोग लग सकते हैं।
4. गर्भवती महिलाओं को ग्रहण की किसी भी किरण को अपने गर्भ पर नहीं पड़ने देना चाहिए। सूर्य ग्रहण या चंद्र ग्रहण के दौरान उन्हें घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए।
5. ऐसी सलाह दी जाती है कि गर्भवती महिलायें अगर ग्रहण के समय सोती है तो अपने पास एक नारियल रख कर जरूर सोयें। मान्यता है कि नारियल को अपने पास रख कर सोने से से ग्रहण की काली छाया मां और उसके होने वाले बच्चे तक नहीं पहुंचती है।
6. सूर्य ग्रहण या चंद्रग्रहण की अवधि में गर्भवती स्त्रियों को पूजा पाठ करने की भी सलाह दी जाती है। ग्रहण के समय पूजा करने से बच्चे पर इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
हम उम्मीद करते है आपको हमारे द्वारा दी गई जानकारी पसंद आई होगी। कमेंट्स कर के हमें जरूर बताये।
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