होली 2019: होलिका दहन शुभ मुहूर्त एवं पूजन विधि
होली(Holi) का पर्व साल में आने वाले सबसे बड़े त्यौहारों में से एक है जिसे केवल भारत में ही नहीं बल्कि दूर देशों में भी बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। हर्ष, उल्लास और रंगों का यह त्यौहार मुख्यतः दो दिन तक मनाया जाता है। होली पर्व को असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है। पहले दिन होलिका दहन (Holika Dahan) यानी छोटी होली मनाई जाती है। होलिका दहन के दिन एक पवित्र अग्नि जलाई जाती जिसमें सभी तरह की बुराई, अंहकार और नकारात्मकता को जलाया जाता है। साथ ही इस दिन को भक्त प्रह्लाद के विश्वास और उसकी भक्ति के रूप में भी मनाया जाता है। अगले दिन,जिसे धुलेंडी कहा जाता है, हम अपने प्रियजनों को रंग लगाकर त्यौहार की शुभकामनाएं देते हैं साथ ही नाच, गाने और स्वादिष्ट व्यंजनों के साथ इस पर्व का मजा लेते हैं। लोग एक दूसरे के घर जाकर रंग लगा कर होली खेलते हैं। सड़कों पर गुलाबी, पीला, हरा और लाल रंग बिखरा दिखाई देता है और रंगों से रंगे लोग माहौल को और खुशनुमा बना देते है।
भारत के सभी त्यौहार अपने आप मे एक सन्देश लाते है और खूब ख़ुशी भरे होते है। भारतीय त्यौहारों के अंतर्गत होली को नए साल की शुरुआत का प्रमुख त्यौहार माना जाता है। रंगो के त्यौहार के नाम से मशहूर होली का त्यौहार फाल्गुन महीने की पूर्णिमा को मनाया जाता है तथा होली(Holi) को वसंत ऋतू के आने और सर्दियों के जाने का प्रतीक माना जाता है।
वैसे तो हर त्यौहार का अपना एक रंग होता है पर सांस्कृतिक रूप से होली ऐसा पर्व है जिसे मनाने वालों में कोई भिन्नता नहीं होती सभी एक ही रंग में रंगे और एक दूसरे के साथ ख़ुशी के इस पर्व का आनंद उठाते हैं। लेकिन सांस्कृतिक महत्व होने के साथ-साथ होली का धार्मिक रूप से भी बहुत अधिक महत्व है।
होली की कहानी (Holi Story)
भारत में होली को प्रेम का त्यौहार भी माना जाता है। यह त्यौहार लोगों के जीवन में खुशियों के रंग भर देता है। लेकिन इस त्यौहार के मनाने के पीछे हिरण्यकश्यप और उसकी बहन होलिका की पौराणिक कथा अत्यधिक प्रचलित है।
कथा के अनुसार प्राचीन काल में हिरणाकश्यप नाम का एक महाशक्तिशाली राक्षसराज हुआ करता था। वह अपने छोटे भाई की मृत्यु का बदला लेना चाहता था, जिसे की भगवान विष्णु ने मारा था। इसलिए हिरण्यकश्यप ने अपने आप को शक्तिशाली बनाने के लिए तपस्या करके ब्रह्मा से वरदान पा लिया कि संसार का कोई भी जीव-जन्तु, देवी-देवता, राक्षस या मनुष्य उसे न मार सके। न ही वह रात में मरे, न दिन में, न पृथ्वी पर, न आकाश में, न घर में, न बाहर। यहां तक कि कोई शस्त्र भी उसे न मार पाए। ऐसा वरदान पाकर वह अत्यंत निरंकुश बन बैठा और खुद को भगवान समझने लगा। हिरण्यकश्यप देवताओं से बहुत घृणा करता था, वह विष्णु विरोधी था उसके आदेशनुसार प्रजा का कोई भी व्यक्ति भगवान विष्णु की पूजा नहीं कर सकता था। ऐसा करने पर उन्हें मृत्युदंड दिया जाता।
हिरण्यकश्यप के यहां प्रहलाद जैसा परमात्मा में अटूट विश्वास करने वाला भक्त पुत्र पैदा हुआ। प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था और उस पर भगवान विष्णु की कृपा-दृष्टि थी। हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को आदेश दिया कि वह उसके अतिरिक्त किसी अन्य की स्तुति न करे। प्रहलाद किसी की परवाह न करते हुए, भगवान विष्णु की भक्ति में लीन रहते थे। इसी कारण हिरणाकश्यप ने प्रहलाद को मृत्युदंड देने का काफी प्रयास किया, पुराणों के अनुसार प्रहलाद को मृत्युदंड के दौरान- जहर देकर मारने की कोशिश की, हाथी के पैर से कुचला गया और पहाड़ों से फेंका गया, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा होने के कारण, हिरणाकश्यप प्रहलाद को मारने में हर बार असफल रहा।
हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को अग्नि से बचने का वरदान था। उसको वरदान में एक ऐसी चादर मिली हुई थी जो आग में नहीं जलती थी। हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका की सहायता से प्रहलाद को आग में जलाकर मारने की योजना बनाई।
होलिका बालक प्रहलाद को गोद में उठा जलाकर मारने के उद्देश्य से वरदान वाली चादर ओढ़ धूं-धू करती आग में जा बैठी। प्रभु-कृपा से वह चादर वायु के वेग से उड़कर बालक प्रह्लाद पर जा पड़ी और चादर न होने पर होलिका जल कर वहीं भस्म हो गई और पहलाद ज्यों के त्यों अग्नि से बाहर आए। तत्पश्चात् हिरण्यकश्यप को मारने के लिए भगवान विष्णु नरंसिंह अवतार में खंभे से निकल कर गोधूली समय (सुबह और शाम के समय का संधिकाल) में दरवाजे की चौखट पर बैठकर अत्याचारी हिरण्यकश्यप को मार डाला।
प्रहलाद के जिंदा बचने की खुशी में लोगों ने इस दिन को त्योहार के रूप में मनाना शुरू कर दिया और यही से होली नामक त्यौहार का जन्म हुआ, इस त्यौहार को लोग बुराई पर सच्चाई की जीत के रूप में भी मनाते हैं। इस दिन लोग एक दूसरे को रंग लगाकर अपनी खुशी का इजहार करते हैं।
होली कब मनाते हैं?
हिन्दू पंचांग के अनुसार, होली फाल्गुन महीने की पूर्णिमा को मनाई जाती है। इसे वसन्तोत्व के रूप में भी मनाया जाता है। जबकि खेलने वाली होली या धुलेंडी, पूर्णिमा के अगले दिन चैत्र कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को मनाई जाती है। पूर्णिमा की होली को छोटी होली कहते हैं और इसी दिन होलिका दहन करने की परंपरा भी की जाती है। हर किसी का तन-मन, प्रेम-उल्लास और उमंग के रंगों की फुहार से सराबोर होने को मचलने लगता है। यह पर्व जीवन में व्याप्त नीरसता, रिश्तों में संक्रमित होती कृत्रिमता को दूर कर उसे नवऊर्जा से संचारित करने का अवसर भी देता है। संयोग की बात ये है कि 21 मार्च से ही चैत्र मास की शुरुआत हो रही है। इस दौरान चंद्र कन्या तथा सूर्य मीन राशि में होंगे।
होली को भारतीय त्यौहारों के अंतर्गत प्रमुख और अलग रंग-ढंग से मनाया जाता है, कुछ हिस्सों में इस त्यौहार का संबंध वसंत की फसल पकने से भी है। किसान अच्छी फसल पैदा होने की खुशी में होली मनाते हैं। इसलिए होली को ‘वसंत महोत्सव’ या ‘काम महोत्सव’ भी कहते हैं।
होलिका दहन(Holika Dahan) या छोटी होली(Choti Holi)
हिन्दू पंचांग तथा धार्मिक ग्रंथो के अनुसार होली फाल्गुन माह की पूर्णिमा को मनाई जाती है। होली को वसंतोतव के रूप में भी मनाया जाता है। फाल्गुन पूर्णिमा को होलिका दहन किया जाता है। पूर्णिमा की होली को होलिका दहन और छोटी होली भी कहा जाता है। होलिका दहन सूर्यास्त के पश्चात् प्रदोष के समय, जब पूर्णिमा तिथि व्याप्त हो उस समय किया जाता है, इसे शुभ माना जाता है। पूर्णिमा तिथि के दौरान भद्रा होने पर होलिका पूजन और होलिका दहन नहीं करना चाहिए। क्यूंकि भद्रा में सभी शुभ कार्य वर्जित माने जाते हैं। सभी शुभ कार्य भद्रा मे वर्जित होते है। रंगवाली होली (धुलेंडी) पूर्णिमा के अगले दिन चैत्र कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को मनाई जाती है।
होली पूजन विधि (Holi Pujan Vidhi)
हिन्दू धर्म शास्त्रों में होली पूजन के महत्व को विस्तार से बताया गया है। होली की पूजा करने से घर में सुख-शांति, समृद्धि, संतान प्राप्ति होती है। धार्मिक एवं सामाजिक एकता के इस पर्व होली में होलिका दहन के लिए हर चौराहे व गली-मोहल्ले में गूलरी, कंडों व लकड़ियों से बड़ी-बड़ी होली सजाई जाती हैं। होलिका दहन के लिये लगभग एक महीने पहले से तैयारियां शुरु कर दी जाती हैं। वहीं बाजारों में भी होली की खूब रौनक दिखाई पड़ती है।
लकड़ी और कंडों की होली के साथ घास लगाकर होलिका खड़ी करके उसका पूजन करने से पहले हाथ में फूल, सुपारी, पैसा लेकर पूजन कर जल के साथ होलिका के पास छोड़ दें और अक्षत, चंदन, रोली, हल्दी, गुलाल, फूल तथा गूलरी की माला पहनाएं।
इसके बाद होलिका की तीन परिक्रमा करते हुए नारियल का गोला, गेहूं की बाली तथा चना को भून कर इसका प्रसाद सभी को वितरित किया जाता है। भारतीय संस्कृति में होलिका दहन को होली पूजा माना जाता है, जो एक रस्म होती है। होली पूजन महोत्सव धुलेंड़ी के एक दिन पूर्व मनाया जाता है। होलिका दहन शुभ मुहूर्त में ही किया जाना अच्छा रहता है।