दीपावली का त्यौहार इस वर्ष 31 अक्टूबर 2024 को मनाया जाएगा। कार्तिक मास अमावस्या की रात में मां लक्ष्मी भगवान गणेश जी की पूजा करते हैं।


भारत एक ऐसा देश है जहाँ सबसे ज्यादा त्यौहार मनाये जाते है, यहाँ विभिन्न धर्मों के लोग अपने-अपने उत्सव और पर्व को अपने परंपरा और संस्कृति के अनुसार मनाते है। दीपावली हिन्दू धर्म के लिये सबसे महत्वपूर्णं, पारंपरिक, और सांस्कृतिक त्यौहार है। दीपावली को रोशनी का त्यौहार भी कहा जाता है। इसे दीपोत्सव भी कहते हैं। दीपावली शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के दो शब्दों 'दीप' अर्थात 'दिया' व 'आवली' अर्थात 'लाइन' या 'श्रृंखला' के मिश्रण से हुई है। इस उत्सव में घरों व मंदिरों में अनेक दीप प्रज्वलित किये जाते हैं। यह त्यौहार आध्यात्मिक रूप से अंधकार पर प्रकाश की विजय को दर्शाता है।

कार्तिक माह की अमावस्या को मनाया जाने वाला यह महापर्व, अंधेरी रात को असंख्य दीपों की रौशनी से प्रकाशमय कर देता है। हर साल यह पर्व अक्टूबर या नवंबर के महीने में आता है। इसे सिर्फ देश में ही नहीं वरन् विदेशों में पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस उत्सव से जुड़ी कई सारी पौराणिक कथाएँ है। इस पर्व को मनाने के पीछे एक खास पहलू ये है कि, असुर राजा रावण को हराने के बाद भगवान राम 14 साल का वनवास काट कर अयोध्या पहुँचे थे। ये वर्षा ऋतु के जाने के बाद शीत ऋतु के आगमन का इशारा करता है। ये व्यापारियों के लिये भी नई शुरुआत की ओर भी इंगित करता है।

दीपावली 5 दिनों का एक भव्य उत्सव है जिसको लोग पूरे आनंद और उत्साह के साथ मनाते है।

दीपावली के पहले दिन को धनतेरस कहते है यह दिन माँ लक्ष्मी की पूजा के साथ मनाया जाता है। इसमें लोग देवी को खुश करने के लिये भक्ति गीत, आरती और मंत्र उच्चारण करते है। धनतेरस के दिन बरतन खरीदना शुभ माना जाता है। प्रत्येक परिवार अपनी-अपनी आवश्यकता अनुसार कुछ कुछ खरीदारी करता है। इस दिन तुलसी या घर के द्वार पर एक दीपक जलाया जाता है। धनतेरस को धन्वन्तरि जयन्ती के रूप में भी मनाया जाता है ।दूसरे दिन को नरक चतुर्दशी या छोटी दीपावली कहते है जिसमें भगवान कृष्ण की पूजा की जाती है क्योंकि इसी दिन कृष्ण ने नरकासुर का वध किया था। ऐसी धार्मिक धारणा है कि सुबह जल्दी तेल से स्नान कर देवी काली की पूजा करते है और उन्हें कुमकुम लगाते है।तीसरा दिन मुख्य दीपावली का होता है जिसमें माँ लक्ष्मी की पूजा की जाती है, पूजा के बाद आतिशबाजी और पटाखों का दौर शरु होता है। अपने मित्रों और परिवारजन में मिठाई और उपहार बाँटे जाते है।चौथा दिन गोवर्धन पूजा के लिये होता है जिसमें भगवान कृष्ण की अराधना की जाती है। लोग गाय के गोबर से अपने आंगन में गोवर्धन बनाकर पूजा करते है। ऐसा माना जाता है कि भगवान कृष्ण ने अपनी छोटी उँगली पर गोवर्धन पर्वत को उठाकर अचानक आयी बारिश से गोकुल के लोगों को वर्षा के देवता इन्द्र से बचाया था। पाँचवें दिन को हमलोग यम द्वितीया या भैया दूज के नाम से जानते है। ये भाई-बहन का त्यौहार होता है। दीपावली के इन पाँचों दिनों की अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताएँ है।


दीपावली के दिन घरों में सुबह से ही तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं। बाज़ारों में खील-बताशे, मिठाइयाँ, खांड़ के खिलौने, लक्ष्मी-गणेश आदि की मूर्तियाँ बिकने लगती हैं। स्थान-स्थान पर आतिशबाजी और पटाखों की दूकानें सजी होती हैं। सुबह से ही लोग रिश्तेदारों, मित्रों, सगे-संबंधियों के घर मिठाइयाँ व उपहार बाँटने लगते हैं। घर-घर में सुन्दर रंगोली बनायी जाती है। दीपावली की शाम लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा की जाती है। पूजा के बाद लोग अपने-अपने घरों के बाहर दीपक व मोमबत्तियाँ जलाकर रखते हैं। चारों ओर चमकते दीपक अत्यंत सुंदर दिखाई देते हैं। रंग-बिरंगे बिजली के बल्बों से बाज़ार व गलियाँ जगमगा उठते हैं। बच्चे तरह-तरह के पटाखों व आतिशबाज़ियों का आनंद लेते हैं। रंग-बिरंगी फुलझड़ियाँ, आतिशबाज़ियाँ व अनारों के जलने का आनंद प्रत्येक आयु के लोग लेते हैं। रंग-बिरंगी ‘रंगोली हर द्वार की शोभा में चार चाँद लगाती है। फूलों, आम के अथवा अशोक वृक्ष के पत्तों से बने तोरणों से घरों के मुख्य द्वार सजाये जाते हैं।

दीपावली यानी धन और समृद्धि का त्यौहार। इस त्यौहार में गणेश और माता लक्ष्मी के साथ ही साथ धनाधिपति भगवान कुबेर, सरस्वती और काली माता की भी पूजा की जाती है। सरस्वती और काली भी माता लक्ष्मी के ही सात्विक और तामसिक रूप हैं। जब सरस्वती, लक्ष्मी और काली एक होती हैं तब महालक्ष्मी बन जाती हैं। दीपावली की रात गणेश जी की पूजा से सद्बुद्धि और ज्ञान मिलता है जिससे व्यक्ति में धन कमाने की प्रेरणा आती है। व्यक्ति में इस बात की भी समझ बढ़ती है कि धन का सदुपयोग किस प्रकार करना चाहिए।माता लक्ष्मी अपनी पूजा से प्रसन्न होकर धन का वरदान देती हैं और धनाधिपति कुबेर धन संग्रह में सहायक होते हैं। इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए ही दीपावली की रात गणेश लक्ष्मी के साथ कुबेर की भी पूजा की जाती है।

दीपावली पूजन विधि सामग्री:

लक्ष्मी पूजा के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रदोष काल में स्थिर लग्न के दौरान होता है। ऐसा माना जाता है कि अगर स्थिर लग्न के दौरान लक्ष्मी पूजा की जाये तो लक्ष्मीजी घर में ठहर जाती है। इसीलिए लक्ष्मी पूजा के लिए यह समय सबसे उपयुक्त होता है।भक्ति भाव से किसी भी समय की गयी पूजा सदैव अच्छा फल देती है। इसलिए अगर किसी कारण से आप उपरोक्त दिये गये समय पर पूजा नही कर सकते तो जब भी समय मिले पूजा अर्चना अवश्य करें। दीपावली के दिन प्रत्येक व्यक्ति मां लक्ष्मी एवं गणेश जी का विधिवत पूजन कर धन की देवी लक्ष्मी से सुख-समृद्धि एवं गणेश जी से बुद्धि की कामना करता है। महालक्ष्मी पूजन में रोली, कुमकुम, चावल, पान, सुपारी, लौंग, इलायची, धूप, कपूर, अगरबत्तियां, दीपक, रुई, कलावा (मौली), नारियल, शहद, दही, गंगाजल, गुड़, धनिया, फल, फूल, जौ, गेहूँ, दूर्वा, चंदन, सिंदूर, घृत, पंचामृत, दूध, मेवे, खील, बताशे, गंगाजल, यज्ञोपवीत, श्वेत वस्त्र, इत्र, चौकी, कलश, कमल गट्टे की माला, शंख, लक्ष्मी व गणेश जी का चित्र या प्रतिमा, आसन, थाली, चांदी का सिक्का, मिष्ठान्न, 11 दीपक इत्यादि वस्तुओं को पूजन के समय रखना चाहिए। आप अपनी परम्परा के अनुसार पूजन सामग्री का प्रयोग करें।


पूजा घर के सम्मुख चौकी बिछाकर उस पर लाल वस्त्र बिछाकर लक्ष्मी-गणेश जी की मुर्ति या चित्र स्थापित करें तथा चित्र को पुष्पमाला पहनाएं। अगर कुबेर, सरस्वती एवं काली माता की मूर्ति हो तो उसे भी रखें। लक्ष्मी माता की पूर्ण प्रसन्नता हेतु भगवान विष्णु की मूर्ति लक्ष्मी माता के बायीं ओर रखकर पूजा करनी चाहिए। लक्ष्मीजी,गणेशजी की दाहिनी ओर रहें। पूजनकर्ता मूर्तियों के सामने की तरफ बैठे। जल से भरा कलश (Kalash) भी चौकी पर रखें। कलश में मौली बांधकर रोली से स्वास्तिक का चिन्ह अंकित करें। कलश को लक्ष्मीजी के पास चावलों पर रखें। नारियल को लाल वस्त्र में इस प्रकार लपेटें कि नारियल का अग्रभाग दिखाई देता रहे व इसे कलश पर रखें। यह कलश वरुण का प्रतीक है। तत्पश्चात श्री गणेश जी को, फिर उसके बाद लक्ष्मी जी और सभी देवी देवताओ को तिलक करें और पुष्प अर्पित करें। पूजन-सामग्री को यथास्थान रख ले। इसके पश्चात धूप, अगरबती और ५ दीप (5 diya) शुध्द घी के और अन्य दीप तिल का तेल /सरसों के तेल (musturd oil) से प्रज्वलित करें।

जहाँ दीपावली का त्यौहार हमारे लिए इतना लाभप्रद है, वहीं इस त्यौहार के कुछ दोष भी हैं कुछ लोग इस दिन जुआ आदि खेलकर अपना धन बरबाद करते हैं उनका विश्वास है कि यदि जुए में जीत गए तो लक्ष्मी वर्ष भर प्रसन्न रहेंगी इस प्रकार से भाग्य आजमाना कई बुराइयों को जन्म देता है, एक बात और, दीपावली पर अधिक आतिशबाजी से बचना चाहिए, क्योंकि इसका धुआँ हमारे पर्यावरण के लिए हानिकारक है ।दीपावली का पर्व सभी पर्वो में एक विशिष्ट स्थान रखता है हमें अपने पर्वो की परम्पराओ को हर स्थिति में सुरक्षित रखना चाहिए परम्पराएँ हमें उसके प्रारम्भ उद्देश्य की याद दिलाती हैं परम्पराएँ  हमें उस पर्व के आदि काल में पहुँचा देती हैं, जहाँ हमें अपनी आदिकालीन संस्कृति  का ज्ञान होता है

दीपावली सभी के लिये एक खास उत्सव है क्योंकि ये लोगों के लिये खुशी और आशीर्वाद लेकर आता है। इससे बुराई पर अच्छाई की जीत के साथ ही नये सत्र की शुरुआत भी होती है। इसे पूरे भारतवर्ष में एकता के प्रतीक के रुप देखा जाता है। आज हम अपने  त्यौहारों को भी आधुनिक सभ्यता का रंग देकर मनाते हैं, परन्तु इससे हमें उसके आदि स्वरूप को बिगाड़ना  नहीं चाहिए हम सबका कर्त्तव्य है कि हम अपने पर्वो की पवित्रता को बनाये रखे








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    Sumegha Bhatnagar

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